होली के पश्चात चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को बंसतोत्सव के रूप में नववर्ष के महोत्सव का आरंभ हो जाता है।
हिन्दू पंचांग के बारह महीनों के क्रम में पहले चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा वर्षभर की सभी तिथियों में इसलिए सबसे अधिकमहत्व रखती है क्योंकि मान्यता के अनुसार इसी तिथि पर ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की।
इस तिथि को प्रथम स्थान मिला, इसलिए इसे प्रतिपदा कहा गया है।
जब ब्रह्मा ने सृष्टि का प्रारंभ किया उस समय इसे प्रवरा तिथि सूचित किया था, जिसका अर्थ है सर्वोत्तम।
इस अर्थ में यह वर्ष का सर्वोत्तम दिन है जो सिखाता है कि हम अपने जीवन में सभी कामों में, सभी क्षेत्रों में जो भी कर्म करें, उनमें हमारा स्थान और हमारे कर्म लोक कल्याण की दृष्टि से श्रेष्ठ स्थान पर रखे जाने योग्य हों।
इसे संवत्सर प्रतिपदा भी कहते हैं। सिंधी समाज का पर्व चेटीचंड भी वर्ष प्रतिपदा के अगले दिन शुरू होता है। शुक्ल पक्ष में चांद अपने पूरे सौन्दर्य के साथ आकाश में विराजमान होता है। इसलिए चैत्रचंद्र का देशज रूप हुआ चैतीचांद और फिर सिंधी में हुआ चेटीचंड।
महाराष्ट्र में यह पर्व गुड़ी पाड़वा ( गुढी पाड़वा) के नाम से मनाया जाता है।
वैसे नवसंवत्सर के लिए गुड़ी पड़वा अब समूचे देश में सामान्य तौर पर जाना जाने लगा है।
महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने प्रतिपादित किया है कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से दिन-मास-वर्ष और युगादि का आरंभ हुआ है।
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