Sunday, March 4, 2018

तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध सिरपुर


सिरपुर में महानदी का वही स्थान है जो भारत में गंगा नदी का है। महानदी के तट पर स्थिति सिरपुर का अतीत सांस्कृतिक विविधता तथा वास्तुकला के लालित्य से ओत-प्रोत रहा है। सिरपुर प्राचीन काल में श्रीपुर के नाम से विख्यात रहा है तथा सोमवंशी शासकों के काल में इसे दक्षिण कौसल की राजधानी होने का गौरव हासिल है। कला के शाश्वत नैतिक मूल्यों एवं मौलिक स्थापत्य शैली के साथ-साथ धार्मिक सौहार्द्र तथा आध्यात्मिक ज्ञान-विज्ञान के प्रकाश से आलोकित सिरपुर भारतीय कला के इतिहास में विशिष्ट कला तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध है।अतीत के पन्नों में सिरपुर की गाथा :- सिरपुर का प्राचीन नाम श्रीपुर है, इतिहासकारों के अनुसार सिरपुर पांचवीं शताब्दी के मध्य दक्षिण कौसल की राजधानी रह चुका है। छठी शताब्दी में चीनी यात्री व्हेनसांग भी यहां आया था। छठी शताब्दी में निर्मित भारत का सबसे पहले ईंटों से बना मंदिर है। यह मंदिर सोमवंशी राजा हर्षगुप्त की विधवा रानी बासटा देवी द्वारा बनवाया गया था। अलंकरण, सौंदर्य, मौलिक अभिप्राय तथा निर्माण कौशल की दृष्टि से यह अपूर्व है। लगभग 07 फुट ऊंची पाषाण निर्मित जगती पर स्थित यह मंदिर रानी बासटा, महाशिव गुप्त बालार्जुन की माता एवं मगध के राजा सूर्यबर्मन की पुत्री थी, यह अत्यंत भव्य है। पंचस्थ प्रकार का यह मंदिर गर्भगृह, अंतराल तथा मंडप से संयुक्त है। मंदिर के बाह्य भित्तियों पर कूट-द्वार बातायन आकृति चैत्य गवाक्ष, भारवाहकगर्ण, गज, कीर्तिमान आदि अभिप्राय दर्शनीय है। मंदिर का प्रवेश द्वार अत्यंत सुंदर है। सिरदल पर शेषदायी विष्णु प्रदर्शित है। उभय द्वार शाखाओं पर विष्णु के प्रमुख अवतार विष्णु लीला के दृश्य अलंकारात्मक प्रतीक, मिथुन दृश्य तथा वैष्णव द्वारपालों का अंकन है। गर्भगृह में रागराज अनंत शेष की बैठी हुई सौम्य प्रतिमा स्थापित है। पुरातात्विक नगरी सिरपुर में वैसे तो प्रायः हर तालाब और पाण्डुवंशीय काल में बड़े-बड़े मंदिरों, का निर्माण हुआ। जिनमें त्रिदेव मंदिर भी प्रमुख है। जिसका प्रवेश द्वार कम से कम दस फुट चौड़ा था। इसी दौरान सुरंग टीला पंचायतन मंदिर गंधेश्वर मंदिर के सामने बड़ा शिव मंदिर आदि का निर्माण हुआ। सिरपुर में गंधेश्वर मंदिर महानदी के पावन तट पर है, जहां इसका निर्माण हुआ। सिरपुर गंधेश्वर मंदिर महानदी के पावन तट पर है, जहां पैदल प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु श्रावण मास में बम्महनी (महासमुंद) सेतगंगा से कांवड यात्रा कर 'बोल बम' के जयकारे के साथ पैदल सिरपुर पहुंचकर भगवान गंधेश्वर में जल अर्पित करते हैं। श्रावण मास में सिरपुर भगवा रंग में रंग जाता है। यहां गंधेश्वर मंदिर जिसका संचालन पब्लिक ट्रस्ट करती है इस मंदिर की पूजा-अर्चना गोस्वामी परिवार की तीसरी पीढ़ी कर रही है। राधा-कृष्ण मंदिर एवं विभिन्न सम्प्रदाय के लोगों के यहां मंदिरों का निर्माण कराया गया है। मंदिर का संचालन एक ट्रस्ट एवं सामाजिक जनों द्वारा किया जाता है।सिरपुर महोत्सव की शुरुआत :छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के विशेष पहल पर स्थानीय लोगों की मांग पर वर्ष 2006 से सिरपुर महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। इस महोत्सव से सिरपुर को राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है। महोत्सव के आयोजन के बाद से पुरातात्विक स्थलों के उत्खनन में भी तेजी आई है। स्थलों के उत्खनन से बड़े-बड़े शिव मंदिरों सहित विशेष रूप से यहां पंचायत शैली का मंदिर मिले हैं जो कि पंचायतन शैली में निर्मित भारत का सबसे बड़ा मंदिर है। इसके अलावा बौद्धिक स्तूप और राज प्रसाद भी नए उत्खनन में मिले हैं। आकर्षण का केन्द्र :इस गौरवशाली महोत्सव के भव्य और सफल आयोजन के विभिन्न राज्यों से आए कलाकारों द्वारा रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति की जाती है। साथ ही साथ छत्तीसगढ़ी लोकगीतों और लोकनृत्यों की विभिन्न शैलियों को पूरे पंरपरा के साथ मंच में प्रस्तुत किया जाता है। लोकगीत और लोकनृत्य विविध रूपों ददरिया, करमा, देवार नृत्य की मनमोहक प्रस्तुति दी जाती है, भक्तगण मेले के दौरान आयोजित होने वाले विभिन्न कार्यक्रमों का लुत्फ उठाते हैं।

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